Woman’s Day Special “Tyaag Ki Murat” Hindi Poem


अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कवितायें, त्याग की मूरत पर कविता (International Women’s Day Poem in Hindi)

केवल एक दिन यह मान लेने से क्या नारी को सम्मान मिल जाता है? औरत त्याग की एक ऐसी मूरत हैं जिसे देवी का स्थान मिला हैं. किसी पुरुष में सहस्त्र हाथियों का बल होगा, पर एक औरत की ताकत और उसके त्याग के आगे तो शून्य ही हैं. भले ही समाज में इसे दुःख मिला हो, पर उस समाज की खुशहाली की इकलौती नींव एक नारि ही हैं.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता (International Women’s Day Poem in Hindi)

महिला दिवस, एक ऐसा दिन जिसमे दुनियाँ भर की महिलाओं को सम्मान दिया जाता हैं, उनका गुणगान किया जाता हैं. कई देशों में इस दिन अवकाश भी रखा जाता हैं . और कई तरह से इस दिन को मनाया जाता हैं लेकिन क्या महिलाओं की स्थिती दुनियाँ के किसी भी देश में इतनी सम्मानीय हैं ? क्या महिलायें अपने ही घर एवम देश में सुरक्षित हैं ? अधिकारों की बात क्या करे, जब सुरक्षा ही सबसे बड़ा विचारणीय मुद्दा हैं . ऐसे में अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस जैसे दिन समाज को दर्पण दिखाने के लिए महत्वपूर्ण हैं . माना कि एक दिन से महिला विकास संभव नहीं, लेकिन कहीं ना कहीं, यह एक दिन भी पूरी दुनियाँ को एक साथ इस ओर सोचने का मौका देता हैं, जो हर हाल में महत्वपूर्ण हैं. इसलिए इस एक दिन को छोटा समझ कर इसे भुलाने की गलती ना करे, बल्कि एकजुट होकर इस एक दिन को साकार बनाये, ताकि देश विदेश हर जगह महिला सशक्तिकरण की ओर कार्य किया जा सके.

Women's Day Special "Tyaag Ki Murat" Hindi kavita Poem

एक लड़की कुछ नहीं मांगती उसके नाम पर दहेज़ दिया और लिया जाता है पर उसमे उसका कोई अस्तित्व नहीं होता. एक रिश्ते को निभाने के लिए वो समझोते करती चली जाती हैं इस कदर खुद को बदल देती हैं कि उसके अरमान भी उससे मुहं मोड़ लेते.इतना त्याग वो परिवार की खुशियों के लिए करती बस थोड़े से प्यार और इज्जत की उम्मीद लिए. पर वो भी नहीं मिलता उसे. त्याग की मूरत को सफलता से भरे उस परिवार में अनदेखा कर दिया जाता.किसी को उसके त्याग का कोई अहसास नहीं रहता.

हिंदी कविता नारी त्याग की मूरत ( International Women’s Day Poem in hindi)

कुछ माँगा नहीं,कुछ चाहा नहीं,
बदला बस खुद को,कि रिश्ता टूट ना जाये कहीं.

आदतों को बदला,चाहतों को बदला,
भले मेरे अरमानों ने,अपनी करवट को बदला.

समन्दर की एक बूंद बन जाऊं भले,
बस समन्दर में मेरा अस्तित्व तो रहें.

धूल का एक कण भी में बन ना सकी,
मेरे त्याग की ओझल हो गई  छबि.

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